“वाटिका”
के भ्रमणकर्ताओं को
दीपावली की शुभकामनाएँ !
गीता हूँ कुरआन हूँ मैं
मुझको पढ़ इंसान हूँ मैं
ज़िन्दा हूँ सच बोल के भी
देख के ख़ुद हैरान हूँ मैं
इतनी मुश्किल दुनिया में
क्यूँ इतना आसान हूँ मैं
चेहरों के इस जंगल में
खोई हुई पहचान हूँ मैं
खूब हूँ वाकिफ़ दुनिया से
बस खुद से अनजान हूँ मैं
यहां हर शख़्स हर पल हादिसा होने से डरता है
खिलौना है जो मिट्टी का फ़ना होने से डरता है
मेरे दिल के किसी कोने में इक मासूम-सा बच्चा
बड़ों की देख कर दुनिया बड़ा होने से डरता है
न बस में ज़िन्दगी इसके न क़ाबू मौत पर इसका
मगर इन्सान फिर भी कब ख़ुदा होने से डरता है
अज़ब ये ज़िन्दगी की क़ैद है, दुनिया का हर इन्सां
रिहाई मांगता है और रिहा होने से डरता है
ज़ुबां ख़ामोश है डर बोलते हैं
अब इस बस्ती में ख़ंजर बोलते हैं
मेरी परवाज़ की सारी कहानी
मेरे टूटे हुए पर बोलते हैं
सराये है जिसे नादां मुसाफि़र
कभी दुनिया कभी घर बोलते हैं
तेरे हमराह मंज़िल तक चलेंगे
मेरी राहों के पत्थर बोलते हैं
नया इक हादिसा होने को है फिर
कुछ ऐसा ही ये मंज़र बोलते हैं
मेरे ये दोस्त मुझसे झूठ भी अब
मेरे ही सर को छूकर बोलते हैं
अब इस बस्ती में ख़ंजर बोलते हैं
मेरी परवाज़ की सारी कहानी
मेरे टूटे हुए पर बोलते हैं
सराये है जिसे नादां मुसाफि़र
कभी दुनिया कभी घर बोलते हैं
तेरे हमराह मंज़िल तक चलेंगे
मेरी राहों के पत्थर बोलते हैं
नया इक हादिसा होने को है फिर
कुछ ऐसा ही ये मंज़र बोलते हैं
मेरे ये दोस्त मुझसे झूठ भी अब
मेरे ही सर को छूकर बोलते हैं
जब तलक ये ज़िन्दगी बाक़ी रहेगी
ज़िन्दगी में तिशनगी बाक़ी रहेगी
सूख जाएँगे जहाँ के सारे दरिया
आँसुओं की ये नदी बाक़ी रहेगी
मेह्रबाँ जब तक हवायें हैं तभी तक
इस दिए में रोशनी बाक़ी रहेगी
कौन दुनिया में मुकम्मल हो सका है
कुछ न कुछ सब में कमी बाक़ी रहेगी
आज का दिन चैन से गुज़रा, मैं खुश हूँ
जाने कब तक ये ख़ुशी बाक़ी रहेगी
ज़िन्दगी में तिशनगी बाक़ी रहेगी
सूख जाएँगे जहाँ के सारे दरिया
आँसुओं की ये नदी बाक़ी रहेगी
मेह्रबाँ जब तक हवायें हैं तभी तक
इस दिए में रोशनी बाक़ी रहेगी
कौन दुनिया में मुकम्मल हो सका है
कुछ न कुछ सब में कमी बाक़ी रहेगी
आज का दिन चैन से गुज़रा, मैं खुश हूँ
जाने कब तक ये ख़ुशी बाक़ी रहेगी
यूँ देखिये तो आँधी में बस इक शजर गया
लेकिन न जाने कितने परिन्दों का घर गया
जैसे ग़लत पते पे चला आए कोई शख़्स
सुख ऐसे मेरे दर पे रुका और गुज़र गया
मैं ही सबब था अबके भी अपनी शिकस्त का
इल्ज़ाम अबकी बार भी क़िस्मत के सर गया
अर्से से दिल ने की नहीं सच बोलने की ज़िद
हैरान हूँ मैं कैसे ये बच्चा सुधर गया
उनसे सुहानी शाम का चर्चा न कीजिए
जिनके सरों पे धूप का मौसम ठहर गया
जीने की कोशिशों के नतीज़े में बारहा
महसूस ये हुआ कि मैं कुछ और मर गया
शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं
मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं
जानता हूँ रेत पर वो चिलचिलाती धूप है
जाने किस उम्मीद में फिर भी उधर जाता हूँ मैं
सारी दुनिया से अकेले जूझ लेता हूँ कभी
और कभी अपने ही साये से भी डर जाता हूँ मैं
ज़िन्दगी जब मुझसे मज़बूती की रखती है उमीद
फ़ैसले की उस घड़ी में क्यूँ बिखर जाता हूँ मैं
आपके रस्ते हैं आसां, आपकी मंजिल क़रीब
ये डगर कुछ और ही है जिस डगर जाता हूँ मैं
मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं
जानता हूँ रेत पर वो चिलचिलाती धूप है
जाने किस उम्मीद में फिर भी उधर जाता हूँ मैं
सारी दुनिया से अकेले जूझ लेता हूँ कभी
और कभी अपने ही साये से भी डर जाता हूँ मैं
ज़िन्दगी जब मुझसे मज़बूती की रखती है उमीद
फ़ैसले की उस घड़ी में क्यूँ बिखर जाता हूँ मैं
आपके रस्ते हैं आसां, आपकी मंजिल क़रीब
ये डगर कुछ और ही है जिस डगर जाता हूँ मैं
जाने कितनी उड़ान बाक़ी है
इस परिन्दे में जान बाक़ी है
जितनी बँटनी थी बँट चुकी ये ज़मीं
अब तो बस आसमान बाक़ी है
अब वो दुनिया अजीब लगती है
जिसमें अम्नो-अमान बाक़ी है
इम्तिहाँ से गुज़र के क्या देखा
इक नया इम्तिहान बाक़ी है
सर कलम होंगे कल यहाँ उनके
जिनके मुँह में ज़ुबान बाकी है
मेरे ख़ुदा मैं अपने ख़यालों को क्या करूँ
अंधों के इस नगर में उजालों को क्या करूँ
चलना ही है मुझे मेरी मंज़िल है मीलों दूर
मुश्किल ये है कि पाँवों के छालों को क्या करूँ
दिल ही बहुत है मेरा इबादत के वास्ते
मस्जिद को क्या करूँ मैं शिवालों को क्या करूँ
मैं जानता हूँ सोचना अब एक जुर्म है
लेकिन मैं दिल में उठते सवालों को क्या करूँ
जब दोस्तों की दोस्ती है सामने मेरे
दुनिया में दुश्मनी की मिसालों को क्या करूँ
अंधों के इस नगर में उजालों को क्या करूँ
चलना ही है मुझे मेरी मंज़िल है मीलों दूर
मुश्किल ये है कि पाँवों के छालों को क्या करूँ
दिल ही बहुत है मेरा इबादत के वास्ते
मस्जिद को क्या करूँ मैं शिवालों को क्या करूँ
मैं जानता हूँ सोचना अब एक जुर्म है
लेकिन मैं दिल में उठते सवालों को क्या करूँ
जब दोस्तों की दोस्ती है सामने मेरे
दुनिया में दुश्मनी की मिसालों को क्या करूँ
मिट्टी का जिस्म लेके मैं पानी के घर में हूँ
मंज़िल है मेरी मौत, मैं हर पल सफ़र में हूँ
होना है मेरा क़त्ल ये मालूम है मुझे
लेकिन ख़बर नहीं कि मैं किसकी नज़र में हूँ
पीकर भी ज़हरे-ज़िन्दगी ज़िन्दा हूँ किस तरह
जादू ये कौन- सा है, मैं किसके असर में हूँ
अब मेरा अपने दोस्त से रिश्ता अजीब है
हर पल वो मेरे डर में है, मैं उसके डर में हूँ
मुझसे न पूछिए मेरे साहिल की दूरियाँ
मैं तो न जाने कब से भँवर-दर-भँवर में हूँ
मंज़िल है मेरी मौत, मैं हर पल सफ़र में हूँ
होना है मेरा क़त्ल ये मालूम है मुझे
लेकिन ख़बर नहीं कि मैं किसकी नज़र में हूँ
पीकर भी ज़हरे-ज़िन्दगी ज़िन्दा हूँ किस तरह
जादू ये कौन- सा है, मैं किसके असर में हूँ
अब मेरा अपने दोस्त से रिश्ता अजीब है
हर पल वो मेरे डर में है, मैं उसके डर में हूँ
मुझसे न पूछिए मेरे साहिल की दूरियाँ
मैं तो न जाने कब से भँवर-दर-भँवर में हूँ
क़फ़स में रहके खुला आसमान भूल गए
फिर उसके बाद परिन्दे उड़ान भूल गए
हर एक शख़्स इशारों में बात करता है
ये क्या हुआ कि सब अपनी ज़ुबान भूल गए
ज़मीं का होश रहा और न आसमाँ की ख़बर
किसी की याद में दोनों जहान भूल गए
फरिश्ते खुशियों के आए थे बाँटने ख़ुशियाँ
वो सबके घर गए मेरा मकान भूल गए
सबक़ वो हमको पढ़ाए हैं ज़िन्दगी ने कि हम
मिला था जो भी किताबों से ज्ञान भूल गए
वो खुशनसीब हैं, सुनकर कहानी परियों की
जो अपनी दर्द भरी दास्तान भूल गए
0
कवि-सम्पर्क :
ए-403, सिल्वर मिस्ट,
निकट- अमरनाथ टावर
आफ़ यारी रोड, संजीव एन्क्लेव लेन
7 बंग्लाज़, अंधेरी(पश्चिम)
मुंबई- 400 061
दूरभाष : 098215 47425
फिर उसके बाद परिन्दे उड़ान भूल गए
हर एक शख़्स इशारों में बात करता है
ये क्या हुआ कि सब अपनी ज़ुबान भूल गए
ज़मीं का होश रहा और न आसमाँ की ख़बर
किसी की याद में दोनों जहान भूल गए
फरिश्ते खुशियों के आए थे बाँटने ख़ुशियाँ
वो सबके घर गए मेरा मकान भूल गए
सबक़ वो हमको पढ़ाए हैं ज़िन्दगी ने कि हम
मिला था जो भी किताबों से ज्ञान भूल गए
वो खुशनसीब हैं, सुनकर कहानी परियों की
जो अपनी दर्द भरी दास्तान भूल गए
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निकट- अमरनाथ टावर
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ई-मेल :rreddy@arenamobile.com