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“वाटिका” – समकालीन कविता के इस उपवन में भ्रमण करते हुए अभी तक आप अनामिका, भगवत रावत, अलका सिन्हा, रंजना श्रीवास्तव, हरकीरत ‘हीर’, सुरेश यादव, कात्यायनी, रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, डॉ. अरविन्द श्रीवास्तव, इला प्रसाद और जेन्नी शबनम की कविताएं तथा राजेश रेड्डी, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, रामकुमार कृषक, आलोक श्रीवास्तव, सुरेन्द्र शजर, अनिल मीत, शेरजंग गर्ग, लता हया, ओमप्रकाश यती, रंजना श्रीवास्तव और नरेश शांडिल्य ग़ज़लें पढ़ चुके हैं। ‘वाटिका’ के मई 2011 के अंक में इस बार उर्दू-हिंदी के जाने माने कवि नोमान शौक की दस कविताएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है, आप इन्हें पसन्द करेंगे और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएँगे…
-सुभाष नीरव
नोमान शौक़ की कविताएँ
हमेशा के लिए
निकल जाते हैं सपने
किसी अनन्त यात्रा पर
बार-बार की यातना से तंग आकर
गीली आँखें
बार-बार पोंछी जाएं
सख्त हथेलियों से
तो चेहरे पर ख़राशें पड़ जाती हैं
हमेशा के लिए !
0
यातना
बुझती हुई सिगरेट
देर तक दबी रहे उंगलियों में
तो जला डालती है
स्पर्श की संवेदना
मृत शरीर
कितने ही प्रिय व्यक्ति का क्यों न हो
बदबू देने लगता है
थोड़े समय बाद
किसी टूटे हुए रिश्ते को
अन्तिम सांस तक संभाल कर
जीने की चाह से
बड़ी नहीं होती
कोई यातना ।
०
हमेशा के लिए
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh_8QDCzcYmXlLcYInLVw4Qfi4bFFXVXEkd4TQv5Tq74dCFND6sRdRjHpzUBYK8WnuwSEDrRmFINcBHLWeLCBJ_n30Mj6Avaf0xaQ7dTEwhCh8SA3p5G93VKLOyOLQkphmnqImf9LHwGoE/s320/a3a610c258d91fc2.jpg)
किसी अनन्त यात्रा पर
बार-बार की यातना से तंग आकर
गीली आँखें
बार-बार पोंछी जाएं
सख्त हथेलियों से
तो चेहरे पर ख़राशें पड़ जाती हैं
हमेशा के लिए !
0
यातना
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjwlLNch5YQ5H9tQw_QpZiaOhrIatiPrFdqCfxPaiasvR03hxzAWHhHT_NWD5YytiH2G0aKnAUgTf2Z0xxUyEBxbmCy44pO2IMju05L3KoJxhNcVQZWVbkzp2iIAW3L2HK3_oNvRdpVHGc/s320/7d3dea689aaf5f5c.jpg)
देर तक दबी रहे उंगलियों में
तो जला डालती है
स्पर्श की संवेदना
मृत शरीर
कितने ही प्रिय व्यक्ति का क्यों न हो
बदबू देने लगता है
थोड़े समय बाद
किसी टूटे हुए रिश्ते को
अन्तिम सांस तक संभाल कर
जीने की चाह से
बड़ी नहीं होती
कोई यातना ।
०
उन्हें ऐतराज़ है
वे कहते हैं
वसंत रुक क्यों नहीं जाता
उनके गमले में उगे पौधों पर
ठहर क्यों नहीं जाता
हमेशा के लिए पानी
गांव के तालाब में
धरती पर गिर कर
क्यों खाद में तब्दील हो जाते हैं
पलाश के फूल
क्यों छोड़ जाती हैं
अमावस के पदचिन्ह
चांदनी रातें उनकी खिड़कियों पर
सुरा और सुन्दरी के बीच रहकर भी
क्यों बूढे हो जाते हैं वे
उन्हें ऐतराज़ है !
उन्हें ऐतराज़ है
आख़िर घूमती क्यों है पृथ्वी !
0
उसे मालूम है
उसे मालूम है
किस रात की
क्या उम्र होती है
उसे मालूम है
कितना अंधेरा हो
तो दीपक राग गाते हैं
उसे मालूम है
कितनी उदासी हो
तो कितना मुस्कुराते हैं
उसे मालूम है
किस गीत का मुखड़ा
मैं उसकी शक्ल को देखे बिना
सोच भी सकता नहीं
मगर जब भी
वो मेरी सिम्त आना चाहता है
जाने क्यों हर मरतबा
इक काली बिल्ली
उसका रस्ता काट जाती है !
0
इंतज़ार
बारिश की गवाही में खिले
चाहत के फूल मुरझाने लगे
लहकते, महकते बाग़ीचों में
ज़र्द पत्तों की झांझनें बजने लगीं
नदी किनारे उगी सरकंडों की बाड़ से
पलायन कर गए मुर्गाबियों के झुंड
कितने ही स्वप्निल मौसमों की
रंगीन चादरें जलकर राख हो गईं
उम्र की रस्सी से
यह आख़िरी गांठ भी खोल दी मैंने
मगर तुम नहीं आए…
०
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEht_akK7YmHEYeBlkBL3DsGIYrN7YNjxaLNjaoPmvhcTXfjO6FZHSDLd41R5-4DGDxZo3JQLF7lRkWqNfsm0hQ-iyLnhOj65nctcJ2cfZAqXVQA17w2nGRK2nKspm0wPloYIJR3gxX4Dbk/s320/imagesCANE0NXO.jpg)
वसंत रुक क्यों नहीं जाता
उनके गमले में उगे पौधों पर
ठहर क्यों नहीं जाता
हमेशा के लिए पानी
गांव के तालाब में
धरती पर गिर कर
क्यों खाद में तब्दील हो जाते हैं
पलाश के फूल
क्यों छोड़ जाती हैं
अमावस के पदचिन्ह
चांदनी रातें उनकी खिड़कियों पर
सुरा और सुन्दरी के बीच रहकर भी
क्यों बूढे हो जाते हैं वे
उन्हें ऐतराज़ है !
उन्हें ऐतराज़ है
आख़िर घूमती क्यों है पृथ्वी !
0
उसे मालूम है
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEicLrdi60SrBHMQGTS8wnlGDkWGbRuZwQDSIwIeixLLfRLF-W8ZkEPx4khSeATtaSmOyql2hDpLE1xvsa2UIBQRTKC3yuILEYNc3vuGkWrsGvcv501fx3fGYbnOuI13onQlWiQ6j4ivMqE/s320/imagesCAGRXG75.jpg)
किस रात की
क्या उम्र होती है
उसे मालूम है
कितना अंधेरा हो
तो दीपक राग गाते हैं
उसे मालूम है
कितनी उदासी हो
तो कितना मुस्कुराते हैं
उसे मालूम है
किस गीत का मुखड़ा
मैं उसकी शक्ल को देखे बिना
सोच भी सकता नहीं
मगर जब भी
वो मेरी सिम्त आना चाहता है
जाने क्यों हर मरतबा
इक काली बिल्ली
उसका रस्ता काट जाती है !
0
इंतज़ार
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhnd7_Z90Wk3ON23NHK5wwtrBTpV6n1Tk7edezrWEiE3rbVEWdxpAYSRs4AXo01UKhWjl8UDnQVVyRp2C8jp5qWT5QfM54kYIetxyiFTHI6WN3sUDmCilLEmC7phyphenhyphenlCoXMDEXZ4kHbAub8/s320/imagesCAC7I9M7.jpg)
चाहत के फूल मुरझाने लगे
लहकते, महकते बाग़ीचों में
ज़र्द पत्तों की झांझनें बजने लगीं
नदी किनारे उगी सरकंडों की बाड़ से
पलायन कर गए मुर्गाबियों के झुंड
कितने ही स्वप्निल मौसमों की
रंगीन चादरें जलकर राख हो गईं
उम्र की रस्सी से
यह आख़िरी गांठ भी खोल दी मैंने
मगर तुम नहीं आए…
०
ख़ज़ाने पर
मैं ही हूँ
सबसे ज्यादा कंजूस
अपने दोस्तों में
बैठा रहता हूं आठों पहर
अपने दुखों के ख़ज़ाने पर
कुंडली मारे
नाग की तरह।
0
ग्राउन्ड ज़ीरो
वहाँ भी होता है
एक रेगिस्तान
जहाँ किसी को दिखाई नहीं देती
उड़ती हुई रेत
वहाँ भी होता है
एक दर्द
जहाँ तलाश नहीं किये जा सकते
चोट के निशान
वहाँ भी होती है
एक रात
जहाँ जुर्म होता है
चांद की तरफ़ देखना भी
वहाँ भी होती है
एक रौशनी
जहाँ पाबंदी होती है
पतंगों के आत्मदाह पर
वहाँ भी होती है
एक दहशत
जहाँ अदब के साथ
क़ातिलों से इजाज़त मांगनी होती है
चीख़ने से पहले
वहाँ भी होता है
एक शोक
जहाँ मोमबत्तियां तक नहीं होतीं
मरने वालों की याद में जलने
या जलाने के लिए
वहाँ भी होता है
एक शून्य
जहाँ नहीं पहुंच पाते
टी. वी. के कैमरे।
0
तनी हुई रस्सी पर
बार-बार रुक जाता हूं मैं
सन्तुलन बनाए रखने की चिन्ता में।
बहुत मुश्किल होता है
किसी बेनाम रिश्ते की तनी हुई रस्सी पर
चलते रहना सारी उम्र।
०
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhx3XTxTRLRIizXdK4v2voxhxDIjsKSffzxtWzvNscSUy28930JQf8Jgr2qRH9HbpdzLIPzbfowdkpcF4aK7lyjWKjl1L2sYpSGzN8bSNJYexF80qFcqoe0JuZ1UHM8AeSntk8DPfwYc1o/s320/imagesCAASGV8E.jpg)
सबसे ज्यादा कंजूस
अपने दोस्तों में
बैठा रहता हूं आठों पहर
अपने दुखों के ख़ज़ाने पर
कुंडली मारे
नाग की तरह।
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ग्राउन्ड ज़ीरो
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh0kfXpnt5tXu2h-V3RMdn6jAn4DfOujgmQKJ93O5uf735aPiL2vlSDUxp-o2kxV79nI1Q71OC6tR55GJzB_OYY_yCNZcWP6O_iZSApxlKK_x0uW868xdFPTrWSmW85x9vyv6NfAkTj-LY/s320/0212b282f5f16d1c.jpg)
एक रेगिस्तान
जहाँ किसी को दिखाई नहीं देती
उड़ती हुई रेत
वहाँ भी होता है
एक दर्द
जहाँ तलाश नहीं किये जा सकते
चोट के निशान
वहाँ भी होती है
एक रात
जहाँ जुर्म होता है
चांद की तरफ़ देखना भी
वहाँ भी होती है
एक रौशनी
जहाँ पाबंदी होती है
पतंगों के आत्मदाह पर
वहाँ भी होती है
एक दहशत
जहाँ अदब के साथ
क़ातिलों से इजाज़त मांगनी होती है
चीख़ने से पहले
वहाँ भी होता है
एक शोक
जहाँ मोमबत्तियां तक नहीं होतीं
मरने वालों की याद में जलने
या जलाने के लिए
वहाँ भी होता है
एक शून्य
जहाँ नहीं पहुंच पाते
टी. वी. के कैमरे।
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तनी हुई रस्सी पर
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNj7RAKLCODVcQGjhkW8M4UNqgHK5lQGfgB1Y-Y4crZ_py3jhqp0wl6PrTtyeVwPqMuOUCjAhL-0tjL4aSoqfU9aIpiJYAJj-OTg2XI7at10S-R9IipOYC0f-sxbmRUpTUxLEeaaK-Ggo/s320/imagesCA7XERHZ.jpg)
सन्तुलन बनाए रखने की चिन्ता में।
बहुत मुश्किल होता है
किसी बेनाम रिश्ते की तनी हुई रस्सी पर
चलते रहना सारी उम्र।
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अजनबी
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjujQ59MGhFj9e37RU9mP6Q1DiPSZpkykvdWp9VSrK-0L6EOBJlOPWSwRkFfBYTdtAWFsACZNiv-mTPmncjdMoiivbi7ttXBZgPNP8jCg7MHLVwR2uvu9RRLfbH-CSfn2myUKHUl5pMD-k/s320/eebfc9b14760d06e.jpg)
हमारे ख़मीर में इतनी वहशत
कि हम इंतज़ार भी नहीं कर सकते
फ़लसफ़ों के पकने का
यहाँ क्यों उगती है
सिर्फ शक की नागफनी ही
दिलों के दरमियाँ
कौन बो देता है
हमारी ज़रख़ेज़ मिट्टी में
रोज़ एक नया ज़हर!
यक़ीन के अलबेले मौसम
तू मेरे शहर में क्यों नहीं आता!
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उम्र की तख्ती पर
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQAq57QnkGjfzekKWieFib3ApdRVo7DDM2f9fY5z68E1rY5-u9gxJxvY-X9uBgk7GuYQTjBxfPyJ-02qCs9J8dK7JeCSxb2JoXPfUPqn5wht4TrSBZY2ZynEzP6Jo4k3qU1vrueVVilSQ/s320/imagesCA0OWTOV.jpg)
हाथ से फिसल कर
उछलती हुई
दूर-बहुत दूर चली गई दुनिया
और मैं!
उम्र की तख्ती पर लिखता रहा
सिर्फ़ दिन, महीने और साल!
000
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8xnjBPWKs0w_jx3wgAw1dmIganmGv1CFy52gPublYQlIFJOYkRi9uL_llPILCU1j60BDWLTEJz3jJcBCKnGuwuAVloTssfkN-Tp8XCP1sznUiWokfbP1udqQIQaaAOuOlvh4o4luxkPA/s320/Photo_Nomaan_2.jpg)
जन्म : आरा, बिहार में जन्म 02 जुलाई 1965
शिक्षा : स्नातकोत्तार अंग्रेज़ी और उर्दू
1981 से हिंदी एवं उर्दू में समान रुप से लेखन
'रात और विषकन्या' कविता संग्रह (ज्ञानपीठ द्वारा दूसरा संस्करण प्रकाशित) 'अजनबी साअतों के दरम्यान' (ग़ज़ल संग्रह)
'जलता शिकारा ढूंढने' में (ग़ज़ल संग्रह)
'फ़्रीज़र में रखी शाम'(कविता संग्रह)
कविताएं, ग़ज़लें, आलोचनात्मक लेख, समीक्षाएं और हिन्दी, उर्दू , फ़ारसी तथा अंग्रेज़ी से परस्पर अनुवाद विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित
कई रचनाओं का अंग्रेज़ी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद
संप्रति: आकाशवाणी, दिल्ली।
सम्पर्क: ए-501, प्रसार कुंज, सेक्टर पाई वन, ग्रेटर नोएडा-201306
कार्यालय: एफ़.एम.रेनबो,आकाशवाणी, संसदमार्ग,नई दिल्ली-110001
मोबाइल: 09810571659
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