“वाटिका” – समकालीन कविता के इस उपवन में भ्रमण करते हुए अभी तक आप अनामिका, भगवत रावत, अलका सिन्हा, रंजना श्रीवास्तव, हरकीरत ‘हीर’, सुरेश यादव, कात्यायनी, रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, डॉ. अरविन्द श्रीवास्तव, इला प्रसाद और जेन्नी शबनम की कविताएं तथा राजेश रेड्डी, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, रामकुमार कृषक, आलोक श्रीवास्तव, सुरेन्द्र शजर, अनिल मीत, शेरजंग गर्ग, लता हया, ओमप्रकाश यती, रंजना श्रीवास्तव और नरेश शांडिल्य ग़ज़लें पढ़ चुके हैं। ‘वाटिका’ के अप्रैल 2011 के अंक में एक बार पुन: समकालीन हिंदी कविता की प्रमुख कवयित्री रंजना श्रीवास्तव को प्रस्तुत करे रहे है- उनके चार गीत और छह ग़ज़लों के साथ…
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं की हमें प्रतीक्षा रहेगी…
-सुभाष नीरव
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं की हमें प्रतीक्षा रहेगी…
-सुभाष नीरव
चार गीत, छह ग़ज़लें : रंजना श्रीवास्तव
चार गीत
(1)
एक चेहरा मुझे आप जैसा लगा
चार गीत
(1)
एक चेहरा मुझे आप जैसा लगा
एक चेहरा मुझे आप जैसा लगा
चांदनी रात में चांद जैसा लगा
हमने सरहद बनायी अलग हो गये
आइने में दिखीं सूरतें इक जगह
फूल की बस्तियां चुप सी रहने लगीं
तितलियों का सफ़र आग जैसा लगा
एक चेहरा मुझे आप जैसा लगा
चांदनी रात में चांद जैसा लगा
नाव थी काग़ज़ी और मौसम घिरा
बारिशों में संवरती रही ज़िन्दगी
याद तुमको लिए आ गई इस तरह
ज़ख़्म भीतर का फिर दाग जैसा लगा
एक चेहरा मुझे आप जैसा लगा
चांदनी रात में चांद जैसा लगा
दिल की बेचैनियों से लड़ूं किस तरह
आग की बारिशों से बचूं किस तरह
तुम ही तुम बस रहे हर तरफ ज़िन्दगी
हिज्र का सिलसिला साथ जैसा लगा
एक चेहरा मुझे आप जैसा लगा
चांदनी रात में चांद जैसा लगा
रोशनी की कहानी बनी इस तरह
धूप बिस्तर पे करवट बदलती रही
शाम आयी तो मखमल हुई रोशनी
मुस्कराता समां सांझ जैसा लगा
एक चेहरा मुझे आप जैसा लगा
चांदनी रात में चांद जैसा लगा॥
चांदनी रात में चांद जैसा लगा
हमने सरहद बनायी अलग हो गये
आइने में दिखीं सूरतें इक जगह
फूल की बस्तियां चुप सी रहने लगीं
तितलियों का सफ़र आग जैसा लगा
एक चेहरा मुझे आप जैसा लगा
चांदनी रात में चांद जैसा लगा
नाव थी काग़ज़ी और मौसम घिरा
बारिशों में संवरती रही ज़िन्दगी
याद तुमको लिए आ गई इस तरह
ज़ख़्म भीतर का फिर दाग जैसा लगा
एक चेहरा मुझे आप जैसा लगा
चांदनी रात में चांद जैसा लगा
दिल की बेचैनियों से लड़ूं किस तरह
आग की बारिशों से बचूं किस तरह
तुम ही तुम बस रहे हर तरफ ज़िन्दगी
हिज्र का सिलसिला साथ जैसा लगा
एक चेहरा मुझे आप जैसा लगा
चांदनी रात में चांद जैसा लगा
रोशनी की कहानी बनी इस तरह
धूप बिस्तर पे करवट बदलती रही
शाम आयी तो मखमल हुई रोशनी
मुस्कराता समां सांझ जैसा लगा
एक चेहरा मुझे आप जैसा लगा
चांदनी रात में चांद जैसा लगा॥
(2)
चाँद झांको न यूं खिड़कियों से
चाँद झांको न यूं खिड़कियों से
यूँ न चेहरा हटा बदलियों से
ये कोई दर्द है मीठा -मीठा
खुशबुओं सा पिघलता रहा है
हो के बेचैन दिल की गली में
गुफ्तगूं कर रही हिचकियों से
चाँद झांको न यूं खिड़कियों से
यूँ न चेहरा हटा बदलियों से
सुर्ख फूलों से दामन भरा है
और मीठी कशिश रूह में है
मेरी नज़रों का पैमाना छलका
क्यूँ गिला हो भला साकियों से
चाँद झांको न यूं खिड़कियों से
यूँ न चेहरा हटा बदलियों से
एक तसव्वुर शमां बन गयी है
आग कोई धुआँ बन गई है
अश्क चुपचाप बहने लगे हैं
पोंछ दो तुम इन्हें उंगलियों से
चाँद झांको न यूं खिड़कियों से
यूँ न चेहरा हटा बदलियों से
मन में जलती रही आग धीमी
जिस्म में कोई सुलगा किया है
धूप पीती रही है समंदर
जल गया आसमां बिजलियों से
चाँद झांको न यूं खिड़कियों से
यूँ न चेहरा हटा बदलियों से ॥
चाँद झांको न यूं खिड़कियों से
चाँद झांको न यूं खिड़कियों से
यूँ न चेहरा हटा बदलियों से
ये कोई दर्द है मीठा -मीठा
खुशबुओं सा पिघलता रहा है
हो के बेचैन दिल की गली में
गुफ्तगूं कर रही हिचकियों से
चाँद झांको न यूं खिड़कियों से
यूँ न चेहरा हटा बदलियों से
सुर्ख फूलों से दामन भरा है
और मीठी कशिश रूह में है
मेरी नज़रों का पैमाना छलका
क्यूँ गिला हो भला साकियों से
चाँद झांको न यूं खिड़कियों से
यूँ न चेहरा हटा बदलियों से
एक तसव्वुर शमां बन गयी है
आग कोई धुआँ बन गई है
अश्क चुपचाप बहने लगे हैं
पोंछ दो तुम इन्हें उंगलियों से
चाँद झांको न यूं खिड़कियों से
यूँ न चेहरा हटा बदलियों से
मन में जलती रही आग धीमी
जिस्म में कोई सुलगा किया है
धूप पीती रही है समंदर
जल गया आसमां बिजलियों से
चाँद झांको न यूं खिड़कियों से
यूँ न चेहरा हटा बदलियों से ॥
(3)
वो मुझे याद आने लगा है
वो मुझे याद आने लगा है
कोई फिर गुनगुनाने लगा है
बात छिड़ ही गयीं खुशबुओं की
फूल की महफिलें सज गयी हैं
भीगा - भीगा नशा हो गया है
मेघ फिर आज छाने लगा है
वो मुझे याद आने लगा है
कोई फिर गुनगुनाने लगा है
ख्वाब कोई हक़ीकत बना है
रेशमी झालरों सा टंगा है
उसके दीदार की ख्वाहिशें यूँ
कोई चिलमन हटाने लगा है
वो मुझे याद आने लगा है
कोई फिर गुनगुनाने लगा है
रोशनी जल रही आग जैसी
इक कशिश पल रही आग जैसी
बिजलियां थरथराने लगी हैं
आसमा डगमगाने लगा है
वो मुझे याद आने लगा है
कोई फिर गुनगुनाने लगा है
हिज्र है या मिलन की घड़ी है
हाथ में सुर्ख मेंहदी रची है
कंगनों की सदा बावली है
हुस्न नखरे दिखाने लगा है
वो मुझे याद आने लगा है
कोई फिर गुनगुनाने लगा है
खिल पड़े चंदनों के बग़ीचे
चांदनी रात पागल बनी है
इक नदी बह चली इस तरह से
और समंदर मनाने लगा है
वो मुझे याद आने लगा है
कोई फिर गुनगुनाने लगा है॥
वो मुझे याद आने लगा है
वो मुझे याद आने लगा है
कोई फिर गुनगुनाने लगा है
बात छिड़ ही गयीं खुशबुओं की
फूल की महफिलें सज गयी हैं
भीगा - भीगा नशा हो गया है
मेघ फिर आज छाने लगा है
वो मुझे याद आने लगा है
कोई फिर गुनगुनाने लगा है
ख्वाब कोई हक़ीकत बना है
रेशमी झालरों सा टंगा है
उसके दीदार की ख्वाहिशें यूँ
कोई चिलमन हटाने लगा है
वो मुझे याद आने लगा है
कोई फिर गुनगुनाने लगा है
रोशनी जल रही आग जैसी
इक कशिश पल रही आग जैसी
बिजलियां थरथराने लगी हैं
आसमा डगमगाने लगा है
वो मुझे याद आने लगा है
कोई फिर गुनगुनाने लगा है
हिज्र है या मिलन की घड़ी है
हाथ में सुर्ख मेंहदी रची है
कंगनों की सदा बावली है
हुस्न नखरे दिखाने लगा है
वो मुझे याद आने लगा है
कोई फिर गुनगुनाने लगा है
खिल पड़े चंदनों के बग़ीचे
चांदनी रात पागल बनी है
इक नदी बह चली इस तरह से
और समंदर मनाने लगा है
वो मुझे याद आने लगा है
कोई फिर गुनगुनाने लगा है॥
(4)
ज़िन्दगी फूल जैसी रही है
ज़िन्दगी फूल जैसी रही है
खुशबुओं की कहानी बनी है
वो ख्यालों की महफिल में आया
और बजने लगी मेरी पायल
बादलों को नशा हो गया है
बिजलियां बेईमानी बनी हैं
ज़िन्दगी फूल जैसी रही है
खुशबुओं की कहानी बनी है
किसने बिखरा दिए अपने गेसू
चंदनों की महक घुल गयी है
उसके आने का जलवा रहा है
चाहतें आसमानी बनीं हैं
ज़िन्दगी फूल जैसी रही है
खुशबुओं की कहानी बनी है
आइना देखता एक चेहरा
खिड़कियां गुनगुनाने लगी हैं
धूप को आ गया है पसीना
करवटें हदबयानी बनी है
ज़िन्दगी फूल जैसी रही है
खुशबुओं की कहानी बनी है
पानियों को कहां होश है अब
पत्थरों पे खिले फूल सारे
आग ऐसी पिघलती रही है
आंधियाँ खानदानी बनी है
ज़िन्दगी फूल जैसी रही है
खुशबुओं की कहानी बनी है॥
००
ज़िन्दगी फूल जैसी रही है
ज़िन्दगी फूल जैसी रही है
खुशबुओं की कहानी बनी है
वो ख्यालों की महफिल में आया
और बजने लगी मेरी पायल
बादलों को नशा हो गया है
बिजलियां बेईमानी बनी हैं
ज़िन्दगी फूल जैसी रही है
खुशबुओं की कहानी बनी है
किसने बिखरा दिए अपने गेसू
चंदनों की महक घुल गयी है
उसके आने का जलवा रहा है
चाहतें आसमानी बनीं हैं
ज़िन्दगी फूल जैसी रही है
खुशबुओं की कहानी बनी है
आइना देखता एक चेहरा
खिड़कियां गुनगुनाने लगी हैं
धूप को आ गया है पसीना
करवटें हदबयानी बनी है
ज़िन्दगी फूल जैसी रही है
खुशबुओं की कहानी बनी है
पानियों को कहां होश है अब
पत्थरों पे खिले फूल सारे
आग ऐसी पिघलती रही है
आंधियाँ खानदानी बनी है
ज़िन्दगी फूल जैसी रही है
खुशबुओं की कहानी बनी है॥
००
छह ग़ज़लें
(1)
मीठे - मीठे बहानों की बिजली गिरी
टूट कर आसमानों से बिजली गिरी।
या खुदाया कहां से मिली रोशनी
मेरे तन्हा मकानों पे बिजली गिरी।
बस गया इक यहां रोशनी का शहर
दिल के वाज़िब ठिकानों पे बिजली गिरी।
बारिशों के सफ़र की ख़बर यूं रही
इश्क की हर दुकानों पे बिजली गिरी।
कुछ हंसी याद की कश्तियाँ चल पड़ीं
इस तरह आशियानों पे बिजली गिरी।
जश्न दिल का मनाया मुहब्बत ने यूं
रात भर शामियानों पे बिजली गिरी।
‘रंजू’ दीवानगी कुछ बढ़ी इस कदर
हुस्न के हर मुहानों पे बिजली गिरी।
(1)
मीठे - मीठे बहानों की बिजली गिरी
टूट कर आसमानों से बिजली गिरी।
या खुदाया कहां से मिली रोशनी
मेरे तन्हा मकानों पे बिजली गिरी।
बस गया इक यहां रोशनी का शहर
दिल के वाज़िब ठिकानों पे बिजली गिरी।
बारिशों के सफ़र की ख़बर यूं रही
इश्क की हर दुकानों पे बिजली गिरी।
कुछ हंसी याद की कश्तियाँ चल पड़ीं
इस तरह आशियानों पे बिजली गिरी।
जश्न दिल का मनाया मुहब्बत ने यूं
रात भर शामियानों पे बिजली गिरी।
‘रंजू’ दीवानगी कुछ बढ़ी इस कदर
हुस्न के हर मुहानों पे बिजली गिरी।
(2)
मछलियां पल रहीं शीशे में
ज़िन्दगी चल रही है शीशे में।
धूल से हादसा हो गया
बारिशें जल रही शीशे में।
कुछ मकानों के नक्शे गलत
धूप भी पल रही शीशे में।
क़ैद शीशे में जज्बात हैं
प्यास भी ढल रही शीशे में।
अब युं शीशे में भगवान भी
रोशनी गल रही ष्शीशे में ।
‘रंजू’ बाज़ार है कांच का
भीड़ भी चल रही शीशे में।
मछलियां पल रहीं शीशे में
ज़िन्दगी चल रही है शीशे में।
धूल से हादसा हो गया
बारिशें जल रही शीशे में।
कुछ मकानों के नक्शे गलत
धूप भी पल रही शीशे में।
क़ैद शीशे में जज्बात हैं
प्यास भी ढल रही शीशे में।
अब युं शीशे में भगवान भी
रोशनी गल रही ष्शीशे में ।
‘रंजू’ बाज़ार है कांच का
भीड़ भी चल रही शीशे में।
(3)
याद कैसे हंसाती यहाँ
आग कैसे जलाती यहाँ।
तुम कहीं भी रहोगे सनम
इक नदी छलछलाती यहाँ।
फलसफे इश्क के क्या कहूँ
बारिशें भींग जाती यहाँ।
रूह कपड़े हटा जिस्म के
चांदनी में नहाती यहाँ।
धड़कनें रोक लेती हवा
सांस खुशबू बिछाती यहाँ।
बिजलियां पागलों सी गिरीं
पायलें छन-छनाती यहाँ।
संगमरमर - सा गोरा बदन
इक कयामत है आती यहाँ।
‘रंजु’ ये तो कत्ले -आम है
इश्क नखरे उठाती यहाँ।
याद कैसे हंसाती यहाँ
आग कैसे जलाती यहाँ।
तुम कहीं भी रहोगे सनम
इक नदी छलछलाती यहाँ।
फलसफे इश्क के क्या कहूँ
बारिशें भींग जाती यहाँ।
रूह कपड़े हटा जिस्म के
चांदनी में नहाती यहाँ।
धड़कनें रोक लेती हवा
सांस खुशबू बिछाती यहाँ।
बिजलियां पागलों सी गिरीं
पायलें छन-छनाती यहाँ।
संगमरमर - सा गोरा बदन
इक कयामत है आती यहाँ।
‘रंजु’ ये तो कत्ले -आम है
इश्क नखरे उठाती यहाँ।
(4)
भीगी -भीगी घटाओं का जादू चला
उसकी भोली अदाओं का जादू चला।
रंगे - बारिश में भरने लगी थी नदी
उनकी कमसिन निगाहों का जादू चला।
झांझरों की झनक, बिजलियों की सदा
यारां चंचल हवाओं का जादू चला।
दिल के काग़ज़ पे बसने लगा इक शहर
इश्क की उन दुआओं का जादू चला।
हसरतें आग सी यूं सुलगने लगीं
मेरे ऊपर खुदाओं का जादू चला।
महफिलें सज गयीं चान्दनी रात में
खूबसूरत समाओं का जादू चला।
उनके बीमार को ज़िन्दगी मिल गयी
‘रंजू’ बहकी फिजाओं का जादू चला ।
भीगी -भीगी घटाओं का जादू चला
उसकी भोली अदाओं का जादू चला।
रंगे - बारिश में भरने लगी थी नदी
उनकी कमसिन निगाहों का जादू चला।
झांझरों की झनक, बिजलियों की सदा
यारां चंचल हवाओं का जादू चला।
दिल के काग़ज़ पे बसने लगा इक शहर
इश्क की उन दुआओं का जादू चला।
हसरतें आग सी यूं सुलगने लगीं
मेरे ऊपर खुदाओं का जादू चला।
महफिलें सज गयीं चान्दनी रात में
खूबसूरत समाओं का जादू चला।
उनके बीमार को ज़िन्दगी मिल गयी
‘रंजू’ बहकी फिजाओं का जादू चला ।
(5)
इश्क बाज़ार ठेका नहीं
ज़िन्दगी कोई सौदा नहीं।
उन चरागों का मैं क्या करूँ
जिनमें जलने का जज्बा नहीं।
पानियों सा मुकद्दर रहा
आदमी कोई दरिया नहीं।
रोते - रोते कहानी बनी
हिज्र का कोई किस्सा नहीं।
तेरा आना कयामत रहा
अब कोई मेरे जैसा नहीं।
कुछ खुदाओं की रहमत रही
बारिशों का तकाज़ा नहीं।
पास बैठो घड़ी दो घड़ी
फिर न कहना भरोसा नहीं।
इश्क बाज़ार ठेका नहीं
ज़िन्दगी कोई सौदा नहीं।
उन चरागों का मैं क्या करूँ
जिनमें जलने का जज्बा नहीं।
पानियों सा मुकद्दर रहा
आदमी कोई दरिया नहीं।
रोते - रोते कहानी बनी
हिज्र का कोई किस्सा नहीं।
तेरा आना कयामत रहा
अब कोई मेरे जैसा नहीं।
कुछ खुदाओं की रहमत रही
बारिशों का तकाज़ा नहीं।
पास बैठो घड़ी दो घड़ी
फिर न कहना भरोसा नहीं।
(6)
क्यों हवाओं पे पहरा रहा
क्यों समंदर में दरिया रहा।
कोई चलता रहा रात भर
कोई हर वक्त ठहरा रहा।
हम कहें क्या वज़ह बात की
पानियों में वो सहरा रहा।
लोग हंसते हैं जज्बात पे
वो हमेशा युं बिखरा रहा।
रोशनी रात भर थी जली
पर मिरा ज़ख़्म गहरा रहा।
लड़कियाँ खुल के हंस न सकीं
कुछ रिवाजों का पहरा रहा।
‘‘रंजू’ खुशबू रही बेख़बर
फूल का दर्द तनहा रहा।
००
क्यों हवाओं पे पहरा रहा
क्यों समंदर में दरिया रहा।
कोई चलता रहा रात भर
कोई हर वक्त ठहरा रहा।
हम कहें क्या वज़ह बात की
पानियों में वो सहरा रहा।
लोग हंसते हैं जज्बात पे
वो हमेशा युं बिखरा रहा।
रोशनी रात भर थी जली
पर मिरा ज़ख़्म गहरा रहा।
लड़कियाँ खुल के हंस न सकीं
कुछ रिवाजों का पहरा रहा।
‘‘रंजू’ खुशबू रही बेख़बर
फूल का दर्द तनहा रहा।
००
रंजना श्रीवास्तव
जन्म : 9 सितम्बर, 1959, गाज़ीपुर (उ.प्र.)
शिक्षा : एम.ए., बी.एड.
कुछ वर्षों तक अध्यापन से संबद्ध रहने के बाद संप्रति स्वतंत्र
लेखन एवं 'सृजन पथ' का संपादन।
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चाहत धूप के एक टुकड़े की, (कविता संग्रह), आईना-ए-रूह
(ग़ज़ल संग्रह), सक्षम थीं लालटेनें (कविता संग्रह)
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जीवन, जीवन के बाद (कविता संग्रह, प्रकाशक- नयी किताब-दिल्ली), कुछ भी मुश्किल नहीं (कविता संग्रह, बोधिप्रकाशन- जयपुर), इन दिनों रोशनी भीतर में बजती है (कविता संग्रह, प्रकाशक-इन्द्रप्रस्थ, नई दिल्ली )
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