शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

वाटिका - जनवरी 2010


“वाटिका” – समकालीन कविता के इस उपवन में भ्रमण करते हुए अभी तक आप अनामिका, भगवत रावत, अलका सिन्हा, रंजना श्रीवास्तव, हरकीरत कलसी ‘हकीर’, सुरेश यादव, कात्यायनी, रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ की कविताएं और राजेश रेड्डी, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, रामकुमार कृषक, आलोक श्रीवास्तव, सुरेन्द्र शजर, अनिल मीत और शेरजंग गर्ग की ग़जलें पढ़ चुके हैं। इसी श्रृंखला की अगली कड़ी के रूप में प्रस्तुत हैं- समकालीन हिंदी कविता में तेजी से अपनी पुख्ता पहचान बनाने वाले कवि डॉ. अरविन्द श्रीवास्तव की दस चुनिन्दा कविताएं… नव वर्ष 2010 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ…


दस कविताएं - डॉ. अरविन्द श्रीवास्तव

1
जिसे कहे बग़ैर नहीं रहा जाता

हम
ज़िन्दगी का
फिर से करेंगे प्रत्यारोपण

हम फिर से उगायेंगे पलाश
लिखेंगे कविताएँ
रचेंगे प्रेम-पत्र

हम
रात-दिन, दिन-रात
एकटक
देखा करेंगे सपने

हम
बिछुड़ने के लिए
मिलेंगे
एक बार फिर

हम
चाहेंगे वही कहना
जिसे हम नहीं कह पाए

और
जिसे कहे बग़ैर
अब नहीं रहा जाता।

2
प्रेमियों के रहने से

प्रेमियों के रहने से
मरे नहीं शब्द
मरी नहीं परम्पराएँ
कैसटों में गाये जाते रहे प्रेमगीत
लिखी जाती रहीं प्रेम कविताएँ
बचाये जाते रहे प्रेमपत्र
डोरिया कमीज के कपड़े
मूंगफली के दाने
पार्क व लॉन वाले फूलों को
और बचाया जा सका
उजाले से रात को

प्रेमियों के रहने से
मरी नहीं चार्ली चैप्लिन की कॉमेडी
अभिनेत्रियाँ नहीं हुई कभी बूढ़ीं
चालीस के दशक वाले सहगल के गीतों को
बचाये रखा प्रेमियों ने

प्रेमियों के रहने से
एक आदिम सिहरन जीवित रही
अपने पूर्ण वजूद के साथ
हर वक्त

डाल दिए प्रेमियों ने
पुराने और भोथरे हथियार
अजायबघर में
संरक्षित रही विरासत
जीवित रहीं स्मृतियाँ
अषाढ़ के दिन और पूसे की रातें
कटती रहीं
बग़ैर फजीहत के
प्रेमियों के रहने से

प्रेमियों के रहने से
आसान होती रही पृथ्वी की मुश्किलें
और अच्छी व ऊटपटांग चीजों के साथ
बेख़ौफ जीती रही पृथ्वी !

3
सुखद अंत के लिए

महत्वपूर्ण बातें अंत में लिखी जाती हैं
महत्वपूर्ण घोषणाएँ भी अंत में की जाती हैं
और महत्वपूर्ण व्यक्ति भी अंत में आता है

हम बहुत कुछ शुरूआत भी अंत में करते हैं

अंत में हमारा रिश्ता
आरंभ से होता है
जैसे कोई परिणाम और पका फल
हमें अंत में मिलता है

प्रेम में भी हम
अंत में पहुँचने के लिए
उतावले होते हैं

अंतिम विजय के लिए निर्णायक संघर्ष चाहता है
खंदक में छिपा चौकन्ना सिपाही
अंतिम गोली बचाये रखता है
अपराधी और पुलिस भी

कई तरह के अंतिम अस्त्र
छिपाये रखता है कुशल राजनीतिज्ञ
दिमाग में

महामहिम का निर्णय भी
आता है अंत में

अंत हमारे लिए उम्मीदों से भरा होता है
लबालब

हम अंत सुखद चाहते हैं
बच्चे जुटे होते हैं
सकुशल अंत के लिए
शुरूआत से ही।

4
एक ही वक्त में

एक युवक सोच रहा है
धरती और धरती के बाशिन्दों के लिए
यह समय बेहद खराब है

सामने वाली छत से
एक स्त्री
छलांग लगाकर कूदना चाहता है

पड़ोस में बिलखता हुआ एक बूढ़ा
भगवान से
खुद को उठा लेने की प्रार्थना कर रहा है

एक लड़की अभी अभी अगवा हुई है
एक लड़का
अभी अभी
ट्रक से कुचला गया है

एक बुढ़िया सड़क किनारे
बुदबुदा रही है
'यह दुनिया नहीं रह गई हैं
रहने के काबिल'

ठीक ऐसे ही समय में
एक बच्चा अस्पताल में
गर्भाशय के तमाम बंधनों को तोड़ते हुए
पुरज़ोर ताकत से
आना चाहता है
पृथ्वी पर !

5
खुशी की बात

इससे अधिक खुशी की बात
और क्या हो सकती है
कि इस वक्त भी
कौए को मिल जाता है
भरपेट भोजन
बिन पगार के
पहरेदारी करने से
नहीं चूकता कुत्ता

और हमारे यहाँ
विनम्र लोग
अभी भी बाँट कर खा रहे हैं तम्बाकू

कि धूप-चाँदनी
हवा और पानी ने
निर्मम लोगों के प्रति
तनिक भी नहीं बदला है व्यवहार

इससे अधिक खुशी की बात
और क्या हो सकती है
कि अभी भी गर्म है आँच
और बर्फ़ अभी भी है ठंडी।

6
एक दिन अचानक

एक दिन अचानक
दरवाजा खोलते ही
झमाझम बारिश से बचते
बरामदे पर खड़ा मिल जाएगा
वर्षों बिछुड़ा हमारा प्यार
और मैं चौंक उठूँगा

या किसी सफ़र में ट्रेन पर सामने बैठी
या फिर किसी भीड़ भरे बाज़ार में
आमने-सामने हम हों और एक साथ बोले पड़ें- अरे, तुम !

इसी तरह मिलेंगे हम एक दिन अचानक
असंख्य स्मृतियों को सीने में दबाये
जैसे राख के अन्दर दबी होती है आग
फल के अन्दर बीज
और आम जन के सीने में
उम्मीद भरे सपने

इन्हीं सपनों में टटोलते हैं हम
अतीत के खूबसूरत लम्हें
भविष्य का खुशनुमा वर्तमान
और करते हैं एलियन के संग
अंतरिक्ष की सैर
अनगिनत ग्रहों से करते हैं संवाद
और तारों को चाहते टूटने से बचाना
हमारी चुनिंदा तैयारियाँ रहती है प्यार के लिए
गिलहरियाँ ख़बर रखती हैं प्रेम की
प्रेमियों का पता होता है कबूतर को

हमारी छटपटाहट तिलस्म को तलाशती है
हिरण को कस्तूरी मिलने-सा चमत्कार

हमारे पास होता है
अनकही बातों का संग्रहालय भर पुलिंदा
लबालब घड़ा

एक दिन अचानक
जब हम मिलेंगे प्रिय
तब चाहेंगे हम रोना
फूट-फूट कर !

7
दस्तक के बारे में कुछ विचार

द्वार पर दस्तक पड़ी है
चाहता है कोई अन्दर आना

होगा कोई कुशल-क्षेम पूछने वाला
याकि हाथों में बुके लिए
चाहता होगा करना अभिवादन
प्रगति के नयाब नुस्खों के साथ नेटवर्क मार्केटिंग का
होगा कोई तर्क सज्जित लड़का
या कोई जैक पॉट हाथ लगने की शुभ सूचना देने वाला
या कोई कवि अपनी ताजा कविता के साथ
कोई होगा सियासी गलियारों की चर्चा करने वाला
उलाहनों की पोटली खोलने आया होगा कोई
उधार मांगने वालों की भी कमी नहीं
इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता
कि सदियों की सबसे संक्रामक बीमारी
भूख को साथ लाया होगा कोई

बहुत सारी चीज़ें आती हैं जीवन में
बग़ैर दस्तक के
जैसे सुनामी !
जैसे उल्कापिंड !
तब हम नहीं कहते
थोड़ी देर में आना
अभी हम व्यस्त हैं, डाइनिंग टेबुल पर।

8
अफ़सोस के लिए कुछ शब्द

हमें सभी के लिए बनना था
और शामिल होना था सभी में

हमें हाथ बढ़ाना था
सूरज को डूबने से बचाने के लिए
और रोकना था अंधकार से
कम से कम आधे गोलार्द्ध को

हमें बातें करनी थीं पत्तियों से
और तितलियों के लिए इकट्ठा करना था
ढेर सारा पराग

हमें बचाना था नारियल के लिए पानी
और चूल्हे के लिए आग

पहनाना था हमें
नग्न होते पहाड़ों को
पेड़ों का लिबास
और बचानी थी हमें
परिन्दों की चहचहाट

हमें रहना था अनार में दाने की तरह
मेंहदी में रंग
और गन्ने में रस बनकर

हमें यादों में बसना था लोगों के
मटरगश्ती भरे दिनों-सा
और दौड़ना था लहू बनकर
सबों की नब्ज़ में

लेकिन अफ़सोस कि हम ऐसा
कुछ नहीं कर पाए
जैसा करना था हमें !

9
चर्चा में

वक्त बूँदों के उत्सव का था
बूँदें इठला रही थीं
गा रही थीं बूँदें झूम झूमकर
थिरक रहीं थीं
पूरे सवाब में

दरख्तों के पोर पोर को
छुआ बूँदों ने
माटी ने छक कर स्वाद चखा
बूँदों का

रात कहर बन आई थी बूँदें
सवेरे चर्चा में बारिश थी
बूँदें नहीं।

10
आध सेर चाउर

आध सेर चाउर पका
बुढ़वा ने खाया, बुढ़िया ने खाया
लेंगरा न खाया, बौकी ने खाया
माँड़ पिया बकरी ने, कुतवा ने खाया चवर-चवर

आध सेर चाउर नहीं पका
बुढ़वा ने नहीं खाया, बुढ़िया ने नहीं खाया
रह गया लेंगरा भूखा, बौकी भूखी
कुतवा भूखा, बकरिया भूखी

जो गया था चाउर लाने
लौट कर नहीं आया, आजतक !
0
डॉ. अरविन्द श्रीवास्तव
जन्म : 2 जनवरी 1964
शिक्षा : एम.ए.(इतिहास/राजनीति विज्ञान),पी.एचडी.
देश की अनेक छोटी-बड़ी पत्र-पत्रिकाओं यथा - वागर्थ, वसुधा, परिकथा, हंस, वर्तमान साहित्य, अक्षर पर्व, उद्भावना, साक्ष्य, साक्षात्कार, जनपथ, दस्तावेज, उत्तरार्द्ध, सहचर, कारखाना, अभिधा, सारांश, सरोकार, प्रखर, कथाबिंब, योजनगंधा, औरत, आकल्प, शैली, अपना पैगाम, संभवा, कला अभिप्राय, रास्ता, ये पल, क्षितिज, हिन्दुस्तान, पंजाब केसरी, नव बिहार, नवभारत टाइम्स, आर्यावर्त्त, आज, प्रभात खबर, अवकाश, प्रथम प्रवक्ता आदि में कविताएँ प्रकाशित।
प्रकाशित कृतियाँ : 'एक और दुनिया के बारे में' तथा 'अफ़सोस के लिए कुछ शब्द' कविता संग्रह प्रकाशित।
ब्लॉग : yehsilsila.blogspot.com
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सम्पर्क : कला कुटीर, अशेष मार्ग, मधेपुरा-852113(बिहार)
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