शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

वाटिका – अक्तूबर 2011




“वाटिका” – समकालीन कविता के इस उपवन में भ्रमण करते हुए अभी तक आप अनामिका, भगवत रावत, अलका सिन्हा, रंजना श्रीवास्तव, हरकीरत ‘हीर’, सुरेश यादव, कात्यायनी, रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, डॉ. अरविन्द श्रीवास्तव, इला प्रसाद और जेन्नी शबनम, नोमान शौक की कविताएं तथा राजेश रेड्डी, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, रामकुमार कृषक, आलोक श्रीवास्तव, सुरेन्द्र शजर, अनिल मीत, शेरजंग गर्ग, लता हया, ओमप्रकाश यती, रंजना श्रीवास्तव और नरेश शांडिल्य ग़ज़लें पढ़ चुके हैं।
‘वाटिका’ के पिछले अंक (जून 2011) में उदयीमान कवयित्री विनीता जोशी की दस कविताएँ प्रस्तुत की थीं जिनको पाठकों ने भरपूर सराहा। इसबार कुछ विलम्ब से आ रहे ‘वाटिका’ के ताज़ा अंक (अक्तूबर, 2011) में हम समकालीन हिंदी कविता की एक प्रमुख कवयित्री ममता किरण की दस कविताएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है, आप इन्हें पसन्द करेंगे और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया से अवगत कराएँगे…
-सुभाष नीरव





ममता किरण की दस कविताएँ

1
स्त्री और नदी

स्त्री झाँकती है नदी में
निहारती है अपना चेहरा
सँवारती है माथे की टिकुली,
माँग का सिन्दूर
होठों की लाली,
हाथों की चूड़ियाँ
भर जाती है रौब से
माँगती है आशीष नदी से
सदा बनी रहे सुहागिन
अपने अन्तिम समय
अपने सागर के हाथों ही
विलीन हो
उसका समूचा अस्तित्व
इस नदी में

स्त्री माँगती है नदी से
अनवरत चलने का गुण
पार करना चाहती है
तमाम बाधाओं को
पहुँचना चाहती है
अपने गन्तव्य तक

स्त्री माँगती है नदी से
सभ्यता के गुण
वो सभ्यता
जो उसके किनारे
जन्मी, पली, बढ़ी और जीवित रही

स्त्री बसा लेना चाहती है
समूचा का समूचा संसार नदी का
अपने गहरे भीतर
जलाती है दीप आस्था के
नदी में प्रवाहित कर
करती है मंगल कामना सबके लिए
और...
अपने लिए माँगती है…
सिर्फ नदी होना
सिर्फ़ नदी होना।

2
जन्म लूँ

जन्म लूँ यदि मैं पक्षी बन
चिड़ियाँ बन चहकूँ
तुम्हारी शाख पर
आँगन-आँगन जाऊँ, कूदूँ, फुदकूँ
वो जो एक वृद्ध जोड़ा
कमरे से निहारे मुझे
तो उनको रिझाऊँ, पास बुलाऊँ
वो मुझे दाना चुगायें
मैं उनकी दोस्त बन जाऊँ

जन्म लूँ यदि मैं फूल बन
खुशबू बन महकूँ
प्रार्थना बन करबद्ध हो जाऊँ
अर्चना बन अर्पित हो जाऊँ
शान्ति बन निवेदित हो जाऊँ
बदल दूँ गोलियों का रास्ता
सीमा पर खिल-खिल जाऊँ

जन्म लूँ यदि मैं अन्न बन
फसल बन लहलहाऊँ खेतों में
खुशी से भर भर जाए किसान
भूख से न मरे कोई
सब का भर दूँ पेट

जन्म लूँ यदि मैं मेघ बन
सूखी धरती पर बरस जाऊँ
अपने अस्तित्व से भर दूँ
नदियों, पोखरों, झीलों को
न भटकना पड़े रेगिस्तान में
औरतों और पशुओं को
तृप्त कर जाऊँ उनकी प्यास को
बरसूँ तो खूब बरसूँ
दु:ख से व्याकुल अखियों से बरस जाऊँ
हर्षित कर उदास मनों को

जन्म लूँ यदि मैं अग्नि बन
तो हे ईश्वर सिर्फ़ इतना करना
न भटकाना मेरा रास्ता
हवन की वेदी पर प्रज्जवलित हो जाऊँ
भटके लोगों की राह बन जाऊँ
अँधेरे को भेद रोशनी बन फैलूँ
नफ़रत को छोड़ प्यार का पैगाम बनूँ
बुझे चूल्हों की आँच बन जाऊँ।

3
वृक्ष था हरा भरा

वृक्ष था हरा-भरा
फैली थी उसकी बाँहें
उन बाहों में उगे थे
रेशमी मुलायम नरम नाज़ुक़ नन्हें से फूल
उसके कोटर में रहते थे
रूई जैसे प्यारे प्यारे फाहे
उसकी गोद में खेलते थे
छोटे छोटे बच्चे
उसकी छांव में सुस्ताते थे पंथी
उसकी चौखट पर विसर्जित करते थे लोग
अपने अपने देवी देवता
पति की मंगल कामना करती
सुहागिनों को आशीषता था
कितना कुछ करता था सबके लिए
वृक्ष था हरा भरा

पर कभी-कभी
कहता था वृक्ष धीरे से
फाहे पर लगते उड़ जाते हैं
बच्चे बड़े होकर नापते हैं
अपनी अपनी सड़कें

पंथी सुस्ता कर चले जाते हैं
बहुएँ आशीष लेकर
मगन हो जाती हैं
अपनी अपनी गृहस्थी में
मेरी सुध कोई नहीं लेता
मैं बूढ़ा हो गया हूँ
कमज़ोर हो गया हूँ
पता नहीं
कब भरभरा कर टूट जाएँ
ये बूढ़ी हड्डियाँ…

तुम सबसे करता हूँ एक निवेदन
एक बार उसी तरह
इकट्ठा हो जाओ
मेरे आँगन में
जी भरकर देख तो लूँ।

4
चांद

तारों भरे आसमान के साथ
चांद का साथ-साथ चलना
सफ़र में
अच्छा लगता है

कितना अच्छा होता
इस सफ़र में
चांद की जगह
तुम साथ होते।

5
यादें

कभी-कभी
मन की पटरी पर
गुजर जाती हैं यादें
इतनी तेज़ी से
कि जैसे
धड़धड़ाते हुए इक रेलगाड़ी
गुज़र जाती है
धरती के सीने पे

ये यादें हो जाती हैं
सर्द मौसम के गर्म कपड़ों की तरह
जिन्हें हम रख देते हैं सम्भाल कर
गोलियाँ कुनैन की डालकर
कि कहीं लग न जाए
उनमें कोई कीड़ा

ये यादें हो जाती हैं
उन पंछियों की तरह
जो मीलों दूर चलकर आते हैं
दिल के विशाल वृक्ष की टहनियों पर
जमा लेते हैं डेरा
और फिर लगाते फिरते हैं गुहार
उन्हें दाना चुगाने की

ये यादें हो जाती हैं
अपनी वो जमा पूंजी
जिन्हें हम रख देते हैं
तब के लिए संभालकर
कि जब कभी आएगा
कोई मुश्किल वक़्त

ये यादें हो जाती हैं
उस पतंग की तरह
कि जिसे कोई मासूम बच्चा
उड़ा रहा हो पूरे जोश से
सजाता ही हो बस सपना
कि पूरा आसमान उसका है
पर अचानक कट जाए उसकी पतंग
और अटक जाए किसी पेड़ पर

ये यादें हो जाती हैं
बेमौसम की उस बरसात की तरह
कि जैसे अचानक ही कोई बादल
बरस जाता है
तब
आँगन या छत की अलगनी पर
पसरे सारे कपड़े
भीग जाते हैं
कितनी साफ़ हो जाती हैं
सड़कें और मकान
धुल जाते हैं सारे पेड़ पौधे

धुल धुल जाता है वैसे ही मन
बरसती हैं ये यादें जब आँखों से
सभी कुछ हो जाता है फिर पावन
इस तरह कि जैसे ग्रहण लगने पर
घर में खाने पीने की चीज़ों में
रखती थी माँ तुलसी का पत्ता

विरासत में लिए हूँ
माँ से ये तुलसी का पत्ता
मेरी यादों के बीच
हरदम ही ये रहता है
संजोये यादों को
बस आगे बढ़ती जाती हूँ
और इनमें जुड़ता जाता है
इक काफ़िला
और और यादों का…
और और यादों का…।

6
ख़ामियाज़ा

बहुत दिनों से
नहीं लिखी कोई कविता
नहीं गाया कोई गीत
नहीं सुखाये छत पर बाल
नहीं टांका बालों में फूल
नहीं पहनी कलफ़ लगी साड़ी
नहीं देखी कोई फिल्म
नहीं देखी बागों की बहार
नहीं देखा नदी का किनारा
नहीं सुना पक्षियों का कलरव

क्या महानगर में रहने का
भुगतना पड़ता है
ख़ामियाज़ा ?

7
जल

जल है तो जलचर है
जल है तो पशु पक्षी हैं
जल है तो प्राणी हैं
जल है तो पेड़ पौधे हैं
जल है तो जीवन है

जल मैं पूछती हूँ तुमसे
ऐसा क्या है तुममें
कि तुम समाये हो सबमें
होता है तुमसे रश्क

काश ! मैं भी जल हो पाती
पार कर पाती
ऊँचे-नीचे, टेढ़े-मेढ़े रास्ते
शान्ति और सौम्यता से
गुज़र पाती
उन तमाम कंकड़ों से
जो मेरी राह में आते
अर्चना कर हर लेती
लोगों का दुख-दर्द
सिर्फ़ एक घूंट बन देती
लोगों को जीवनदान

दु:खों से भरे उन तमाम हृदयों को
भेद पाती
अश्रु बन उनकी संगी कहलाती
तर्पण बन करती उद्धार
काश ! मैं जल हो पाती।

8
हसरत


गाँव
के मकान की
भंडरिया में
एक अरसे से रखीं
परातें, भगौने, कड़ाही, कलछुल, चमचे
सबको भनक लग गयी है
छोटे भैया की बिटिया का ब्याह होने को है

अब तो हम भी पीछे नहीं रहेंगे
कढ़ाही ने कलछुल से
कलछुल ने परात से,
परात ने चमचे से
चमचे ने भगौने से कहा
खूब रौनक होगी घर में
सारे रिश्तेदार जो आयेंगे
हम भी खूब खटर-पटर नाचेंगे
कभी नानी
कभी बुआ, कभी चाची
तो कभी मौसी के हाथों

व्यंजनों की कल्पना करने लगे हैं
सभी बर्तन
कर रहे हैं आपस में
खुशी-ख़ुशी चटर-पटर
याद कर रहे हैं

बड़े भैया की बिटिया का ब्याह
हफ़्तों पहले से जमा हुए रिश्तेदार
धूम-धाम, चहल-पहल
बिटिया की बिदाई
और साथ ही अपनी भी बिदाई
तब से हम बंद हैं इस भंडरिया में
कड़ाही ने उदास हो कर कहा…

खबर लाई है कलछुल
छोटे भैया की बिटिया का ब्याह हो भी गया
शहर के एक बड़े से फार्म हाउस से
रिश्तेदार मेहमानों की तरह आये
और वहीं से लौट भी गए

यूँ तो इस बात से खुश हैं
परातें, भगौने, कड़ाही, कलछुल, चमचे
कि हो गया छोटे भैया की बिटिया का ब्याह
पर अफ़सोस इस बात का है
कि न तो घर में हुई रौनक…
न जमा हुए रिश्तेदार…
न ही उन्हें मिला मौक़ा
ब्याह में शामिल होने का।





9
कविता

रात भर सपनों में
तैरती रही कविता
सुबह उठ ईश्वर से की प्रार्थना
कि दिन भर लिखूं कविता

और प्रार्थना के बाद
इस तरह शुरू हुआ क्रम
मेरे लिखने का ...

मैने बेली कविता
पकाई विश्वास और नेह की आंच में
तुमने किया उसका रसास्वादन
की तारीफ, तो उमड़ने लगीं
और और कवितायेँ ...

बुहारे फालतू शब्द लम्बी कविता से
आंसुओं की धार से भिगो किया साफ़
तपाया पूरे घर से मिले
सम्बन्धों की आंच में
तो खिल उठी कविता
तुमने उसे पहना, ओढा, बिछाया
मेरी मासूम संवेदनाओं के साथ
तो सार्थक हुई मेरी कविता

तुम्हारे दफ्तर जाने पर
मैंने लिखी कविता दुआ की
कि बीते तुम्हारा दिन अच्छा
घर लौटने पर न हो ख़राब तुम्हारा मूड
न उतरे इधर-उधर की कड़वाहट घर पर

तुम आओ तो मुस्कारते हुए
भर दो मेरी कविता में इन्द्रधनुषी रंग
और हम मिलकर लिखे
एक कविता ऐसी
जो हो मील का पत्थर ।

10
शिकायत

किताबों के होठों पे
शिकायत है
इन दिनों…

अब उनमें
महकता ख़त रख कर
नहीं किया जाता
उनका
आदान-प्रदान।
00

ममता किरण

हिंदी की लगभग सभी प्रतिष्ठित राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं – हंस, पूर्वग्रह, इंडिया टुडे (स्त्री), जनसत्ता साहित्य विशेषांक, कादम्बिनी, साहित्य अमृत, गगनांचल, समाज कल्याण, लोकायत, इंडिया न्यूज़, अमर उजाला, नई दुनिया, अक्षरम संगोष्ठी, अविराम आदि में कविताएं प्रकाशित। सैकड़ों लेख, साक्षात्कार, पुस्तक समीक्षाएं आदि समाचार पत्रों में प्रकाशित। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नेशनल ओपन स्कूल आदि के लिए आलेख लेखन। आकाशवाणी –दूरदर्शन के लिए डाक्यूमेंट्री लेखन।
"ग़ज़ल दुष्यंत के बाद" "परिचय राग" "१०१ चर्चित कवयित्रियाँ" ‘सफ़र जारी है’, छन्द अन्न’ आदि अनेक संग्रहों में ग़ज़लें और कविताएँ संग्रहीत।
देश-विदेश की हिंदी वेब पत्रिकाओं यथा- ‘कविता कोश’, ‘अनुभूति’, ‘साहित्य-कुंज’, ‘साहित्य-सृजन’, ‘रेडियो सबरंग’ ‘आखर कलश’, ‘हिन्दी हाइकू’ आदि में रचनाएं प्रकाशित।
सार्क लेखक सम्मेलन भारत-फ्रांस कविता महोत्सव(दिल्ली), भारतीय साहित्य अकादमी, ग़ालिब अकादमी, राजस्थान साहित्य अकादमी, इंडियन सोसायटी ऑफ ऑथर्स जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा रचना-पाठ के लिए आमंत्रित।
आकाशवाणी, दूरदर्शन एवं निजी चैनलों से कविताओं का प्रसारण।
देश भर में अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों एवं मुशायरों में शिरकत।
दूरदर्शन एवं अनेक निजी टीवी चैनलों के कार्यक्रमों में विशेषज्ञ के रूप में भागीदारी।
दिल्ली विश्वविद्यालय के अनेक कालेजों में निर्णायक के तौर पर भागीदारी।
कई डाक्यूमेंट्री एवं टीवी विज्ञापनों के लिए वॉयस ओवर।
राष्ट्रीय समाचार पत्रों जैसे ‘राष्ट्रीय सहारा’, ‘पंजाब केसरी’, तथा निजी टीवी चैनल आदि से सम्बद्ध रहने के बाद फिलहाल स्वतंत्र पत्रकारिता और लेखन, आकाशवाणी में समाचार वाचिका, उदघोषिका एवं कम्पीयर(अनुबंध के आधार पर)।
सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं की संस्था द्वारा “कवितायन सम्मान”, परिचय साहित्य परिषद् द्वारा "साहित्य सम्मान", दूरदर्शन के लिए लिखी एक डॉक्यूमेंट्री को अंतर्राष्ट्रीय सम्मान।

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