शुक्रवार, 11 जनवरी 2008

दस कविताएं - नव वर्ष 2008

गुस्ता




दस कविता पुष्पों से सजा यह “गुलदस्ता” वाटिका परिवार की ओर से नव वर्ष की अनेकानेक शुभकामनाओं के साथ...


(1)जो कुछ भी हो बेमिसाल हो...
शेरजंग गर्ग


जो कुछ भी हो बेमिसाल हो
सुलझा-सुलझा हर सवाल हो
नया रंग हो, नया हाल हो
नए साल में यह कमाल हो।

जो कुछ भी हो बेमिसाल हो।

आतंकित आतंकवाद हो
हंसी-खुशी हो, निर्विवाद हो
प्रेम-प्यार का पाठ याद हो
मानवता का जय-निनाद हो

जो कुछ भी हो बेमिसाल हो।

सच्चे जीतें, झूठे हारें
देश-जाति का रूप निखारें
सबका स्वागत करें बहारें
केवल अच्छी बात विचारें

जो कुछ भी हो बेमिसाल हो।

पर क्या होगा, कहना मुश्किल
मिल पाएगी कैसे मंजिल
टूटेगा या खुश होगा दिल
फिर भी सोचें-चाहें हिलमिल

जो कुछ भी हो बेमिसाल हो।
नए साल में यह कमाल हो।


संपर्क :
एच–43, ग्राउंड फ्लोर
साउथ एक्सटेंशन, पार्ट–1
नई दिल्ली–110049
दूरभाष :011-24644499
09811993230


(2) इस नए साल में
लक्ष्मी शंकर वाजपेयी

इस नए साल में, कामना है यही
धुंध के बीच कुछ रोशनी भी मिले
दर्दो ग़म हादसे रोज की हैं ख़बर
इनसे हटकर ज़रा सी खु़शी भी मिले।

यूं तो कहने को आबाद हैं बस्तियां
भीड़ ही भीड़ है, शोर ही शोर है
बोलती, चलती, फिरती मशीनें तो हैं,
काश इनमें कोई आदमी भी मिले।

जिस तरफ़ देखिए झूठ, धोखाघड़ी
बेइमानी के हैं बेशरम कहकहे
हर तरफ़ ही दिखे सब गलत ही गलत
थोड़ा-सा कुछ कहीं पर सही भी मिले।

वे जो कहने को जिन्दा भले हैं मगर
ज़िन्दगी से नहीं जिनकी पहचान तक
वे जो घुट-घुट के मरते हैं हर एक पल
उनको सचमुच की कुछ ज़िन्दगी भी मिले।


संपर्क : के–210
सरोजिनी नगर
नई दिल्ली–110023
दूरभाष :011-24676963
09899844933
ई मेल :lsbajpayee@rediffmail.com


(3) नए साल का बयान
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


मैं बार-बार आऊँगा
लेकर फूलों का हार
तुम्हारे द्वार।

जितने भी कांटे पथ में
बिखरे हुए पाऊँगा
आने से पहले मैं
ज़रूर हटाऊँगा।

मैं बार-बार आऊँगा।

बहुत है अंधेर जग में
आंगन में, देहरी पर
जहां तक हो सकेगा
दीपक जलाऊँगा।

मैं बार-बार आऊँगा।

मुस्कानों की खुशबू को
बिखेर हर चेहरे पर
सूरज की चमक सदा
हर बार बिखराऊँगा।

मैं बार-बार आऊँगा।

संपर्क :
प्राचार्य, केन्द्रीय विद्यालय
ओ ई एफ, हजरतपुर
जिला–फिरोजाबाद–293103
उत्तर प्रदेश
दूरभाष : 09319806777
ई मेल :rdkamboj@gmail.com


(4) नव वर्ष अभिनंदन
डा. केवल कृष्ण पाठक

नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन
सौरभमय हो जैसे चंदन।

हो सबके मन में उजियारा
घर-घर में बरसे सुखधारा
तेरे आने पर सब खुश हों
कोई न हो भूख का मारा

जन-मन में कभी न हो क्रंदन।

अब करे न कोई घोटाला
आतंक, प्रदूषण पर ताला
हो दृढ़ निश्चयी प्रत्येक व्यक्ति
हो राष्ट्रप्रेम का मतवाला

करने धरती माँ का वंदन।

सब जग में भाई चारा हो
मन मंदिर में उजियारा हो
सब लोग द्वे्ष से दूर रहें
नयनों में प्रेम की धारा हो

आनंद मुदित हो सबका मन।

कवि संपर्क :
343/19
आनन्द निवास, गीता कालोनी
जीन्द–126102(हरियाणा)


(5) अबके बरस
राजेन्द्र पासवान ‘घायल’

हर तरफ़ किलकारियां हों, कहकहे अबके बरस
प्यार की ऐसी हवा, हर दिन बहे अबके बरस

सारी दुनिया में रहे मुहब्बत की दीवानगी
हम रहें सुख-चैन से, दुनिया रहे अबके बरस

आदमी हर आदमी के काम आए इस तरह
जो पराया हो उसे अपना कहे अबके बरस

पेड़ से लिपटी लताएं चैन से लिपटी रहें
गुल रहे, गुलशन रहे, खुशबू रहे अबके बरस

चांदनी जैसा मज़ा आए अमा की रात में
इस तरह आंगन गली रोशन रहे अबके बरस

नफ़रतों की आग में ‘घायल’ कोई झुलसे नहीं
प्यार की पुरवाई सालों भर बहे अबके बरस

संपर्क :
प्रबंधक, राजभाषा कक्ष
भारतीय रिजर्व बैंक
पटना–800001
दूरभाष : 09431820529
मेल-rajbhashapatna@rbi.org.in



(6)नए वर्ष के स्वागत में
अलका सिन्हा


डिस्को की थिरकती ब​त्तियों के बीच
देर रात तक जश्न मना, जाम टकराये
और डूब गया
वर्ष का आख़िरी सूरज
ग्रीनविच रेखा पर
बारह बजने के साथ ही
बदल गया कैलेंडर
समूची दुनिया में गूंजने लगा–
हैप्पी न्यू ईअर का संगीत...

मगर इस हल्ले-हंगामे से बेख़बर
दूर गांव में एक औरत
रतजगे में बैठी
अखंड दीप जलाये
कर रही है कामना
अदृश्य शक्तियों से
शहर पढ़ने गई
अपनी बेटी की रक्षा के लिए।

रोशनी की जंगली चकाचौंध के बीच
महसूस कर रही हूँ अपने इर्द-गिर्द
उसकी प्रार्थनाओं का रक्षा कवच
रात का अंधेरा छंट रहा है
पौ फट रही है
मैं महसूस कर रही हूँ
कि नए वर्ष की पहली सुबह
आंगन बुहारती वह औरत
प्रभाती गा रही है।

मेरे करीब आता जा रहा है
वह मंगलगान
जिसे मांएं गा रही हैं
नए वर्ष के स्वागत में...

संपर्क :
371, गुरु अपार्टमेंट्स
प्लॉट नं0 2, सेक्टर–6,
द्वारका, नई दिल्ली–110075
ई-मेल : alka_writes@yahoo.com
मोबाइल – 09868424477


(7) सृज कवि ऐसी कविता
सुरेश यादव


नए इस बरस में
तुम्हारे हाथों
सृजन के ऐसे गुल खिलें
कि–
होंठ जो
गीले रहे बीते बरस-भर
सुनहले भोर की
आशा भरी चहक पा
फिर से खिल उठें।

गा उठे हर होंठ
ऐसा गीत लिख दे
साल के माथे पर
धूप की पहली किरण से
रच दे
खुशबू का शिलालेख ऐसा
कि गंध खोया हर फूल
जिसे अपना कहे।

सृज कवि ऐसी कविता
कि अर्थ लय अस्मिता से
बेदख़ल हुआ हर शब्द
उसमें गा सके।

कहीं से कुछ नहीं पाया
जिसने गए बरस-भर
कवि तेरे सृजन में
वह पा सके।


संपर्क :
2/3, एम सी डी फ्लैट्स,
साउथ एक्स, पार्ट–।।,
नई दिल्ली–110049
दूरभाष :011-26255131(निवास)
09818032913(मोबाइल)
ई-मेल :sureshyadav55@gmail.com


(8) नूतन वर्ष
मनोज सिन्हा

सूरज की पहली किरणें ही
ले आएं ऐसा उत्कर्ष
उम्र भर हो यादगार यह
तन-मन पुलकित नूतन वर्ष
मन भावों में गंगाजल हो
प्राणों में हो चन्दनवन
हर पल हो अभिषेक तुम्हारा
हर पथ पर हो
अभिनन्दन ।

संपर्क :
371, गुरु अपार्टमेंट्स
प्लॉट नं0 2, सेक्टर–6,
द्वारका, नई दिल्ली–110075


(9 ) नव वर्ष में
सुभाष नीरव

क्या खोया, क्या पाया के गणित में उलझे
कहा अलविदा जाते वर्ष को
शुभकामनाओं के आदान-प्रदान के बीच
किया स्वागत नये साल का।

लिए कुछ नये संकल्प
की कुछ कामनाएं-प्रार्थनाएं
संजोये कुछ नये स्वप्न।

संकल्प कि
दोहरायें नहीं वे गलतियां
जो हुईं जाने-अनजाते बीते बरस में।

कामनाएं-प्रार्थनाएं कि
बची रहे रिश्तों-संबंधों की महक
संवेदनाएं न हों मृत
वैमनस्य बदले प्रेम में
खुशहाल हो बचपन
न हो उपेक्षा, बेकद्री बुज़ुर्गों की।

स्वप्न कि
किसी भी तरह के आंतक से मुक्त
एक खुशहाल और बेहतर दुनिया में
सांस ले सकें हम
इस नए वर्ष में।

संपर्क :
248, टाइप–3, सेक्टर.3
सदिक़ नगर
नई दिल्ली–110049
दूरभाष : 09810534373
ई मेल : subhneerav@gmail.com


(10)हैप्पी न्यू ईअर
विजय रंजन

कोई विकल्प नहीं था
सिवाय इसके
कि मैं अपनी यात्रा स्थगित कर देता

और जो लोग
नए वर्ष की खुशियां मना रहे हैं
उन लोगों से अलग
हाशिये पर खड़ा हो जाता

मैं जा सकता था उनके साथ
पर मैंने महसूस किया कि
मेरे पास न तो ‘पीटर इंग्लैंड’ की शर्ट है
न ‘रैंगलर’ की पैंट
न ‘रिबॉक’ के जूते
न ही किराये की ठसमठस कोठरी में
बिठाने के लिए हाथ भर की जगह
न ही खिलाने-पिलाने के लिए
पिज्जा और कोल्ड-ड्रिंक्स

यह भी सच है कि
मैंने किसी होटल में
कभी फास्ट-फूड नहीं खाया
न ही बच्चों को कैडबरीज खरीद कर दिए
न ही पत्नी के लिए
अमेरिकन डॉयमण्ड की
नाक की कील खरीदी
क्या बताऊँ आपको
इस जीवन में मैंने
गोल्ड प्लेटिड ज़िन्दगी जीना नहीं सीखा
मैंने तो
ज़िन्दगी भर हाशिये की ज़िन्दगी जी
बंडल से अलग किये गये
सड़े-गले नोटों की तरह

नए वर्ष की खुशियों में
शामिल होने से पहले
मुझे लगा कि
मैं रेल के अनारक्षित दूसरे दर्जे का यात्री हूँ
और वातानुकूलित यान में सफ़र करना
मेरे लिए शेखचिल्ली का ख्वाब है

इसलिए–
मैंने अपनी यात्रा स्थगित कर दी है
अनिश्चित काल के लिए!

कवि संपर्क :
द्वारा मुक्तेश्वर प्रसाद
प्रकाश नगर
बिरसा चौक
रांची–834002(झारखंड)

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